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इतिहास जानने में मददगार साबित होती हैं बही भाटों को बहियां
by seemasandesh
सियारा जोधपुर से पधारे ओमप्रकाश रावजी का बहलोलनगर में हुआ सम्मान हनुमानगढ़ (सीमा सन्देश न्यूज)। सियारा जोधपुर से हनुमानगढ़ प्रवास पर पधारे ओमप्रकाश रावजी, महिपाल रावजी का शुक्रवार को आपणो राजस्थान आपणी राजस्थानी के संयोजक हरीश हैरी, सुशील डेलू ने गांव बहलोलनगर में शॉल ओढाकर सम्मान किया। ओमप्रकाश रावजी ने बताया कि वे डेलू जाट जाति के बहीभाट (रावजी) हैं और राजस्थान के कोने-कोने में घूमकर वंशावली तैयार करते हैं। राव जाति अपनी बहियों में जन्म, विवाह, भात, दान आदि शुभ अवसरों को दर्ज करती है और अपने यजमानों के खुशहाल जीवन और वंश बेल आगे बढ़ने की कामना करती है। बहलोलनगर में राजस्थानी के बैनर, पोस्टर देखकर खुशी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि राजस्थान की विभिन्न जातियां गीत-संगीत और अपनी कला के माध्यम से राजस्थानी भाषा का संरक्षण कर रही हैं परंतु सरकार की तरफ से उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है इसलिए राजस्थानी भाषा को मान्यता होनी बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि हर युग में कला, संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए कलाकारों को राज आश्रय देता है। राजस्थानी कला, संस्कृति तभी बचेगी जब राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलेगी। रोजगार में फायदा मिलेगा। इसके लिए सरकार को आगे आना चाहिए क्योंकि राजस्थान राजस्थानी का पहला घर है। राजस्थान की पहली राजभाषा राजस्थानी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल, कर्नाटक आदि प्रदेशों के साथ साथ जहां-जहां भी राजस्थानी लोग रहते हैं वहां की दूसरी राजभाषा राजस्थानी होनी चाहिए। इस मौके पर ओमप्रकाश राव ने इतिहास में दर्ज वीर और दानवीरों की कई कथाएं सुनाकर मनोरंजन के साथ ज्ञानवर्धन भी किया। आपणो राजस्थान आपणी राजस्थानी के संयोजक हरीश हैरी ने कहा कि राजस्थानी भाषा, संस्कृति और इतिहास में बही भाटों का योगदान अतुलनीय है। सदियों से विभिन्न जातियों की वंशावली को सहेजकर रखने वाले बही भाटों को बहियां इतिहास जानने में मददगार साबित होती हैं। इन बहियों में दर्ज जानकारियों से उस समय की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक वस्तुस्थिति का पता चलता है। राजस्थानी भाषा में लिखी ये बहियां राजस्थानी की अमूल्य धरोहर हैं।