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गारंटी में ही धंस गई शहर की सड़कें

बीकानेर की सड़कें पूरी तरह खस्ताहाल हो चुकी हैं। ऐसी कोई सड़क नहीं जिसमें गड्ढे न हों। ये हाल उन सड़कों के हैं जो पिछले साल ही बनी हैं। ऐसी करीब 15 सड़कें हैं। इनकी मरम्मत की जिम्मेदारी सड़क बनाने वाले ठेकेदारों पर है। इसे मजबूरी कहें या लापरवाही, लेकिन अधिकारी ठेकेदारों पर दबाव भी नहीं डाल पा रहे हैं।

भास्कर टीम ने मंगलवार को शहर की सड़कों का जायजा लिया। कोई ऐसी सड़क नहीं मिली जो गड्‌ढा विहीन हो। लक्ष्मीनाथ मंदिर से गोपेश्वर बस्ती वाली सड़क पिछले साल ही बनी है। कोटगेट से दाऊजी मंदिर रोड पर गड्ढे हैं। आचार्यों के चौक से बड़ेबाजार की आेर जाने वाली रोड को भी देखें। आचार्यों के चौक से रत्ताणी व्यासों के चौक की आेर की सड़क भी पिछले साल ही बनी थी। पूर्व विधानसभा में तो सड़कों के और बुरे हाल हैं। पिछले साल बनी मॉडर्न मार्केट से स्टेशन जाने वाली रोड उखड़ चुकी है। पॉलिटेक्निक कॉलेज से डॉ.धनपत कोचर के घर की आेर से जाने वाली सड़क एक साल पहले बनी, अब उसके हाल बेहाल हैं। हल्दीराम प्याऊ से पहले उदासर के लिए जाने वाली सड़क पर पहुंचते ही करीब 500 मीटर तक सिर्फ गड्ढे ही हैं। संस्कार स्कूल के पास तो इतने बुरे हालात हैं कि लोग पास की कॉलोनी की गली से होकर निकलते हैं।

2. ड्रेनेज नहीं, पानी भरने से टूटती है सड़क : जहां पानी भरा वहां की सड़क टूटी। शहर में ड्रेनेज सिस्टम है नहीं। सिर्फ 60 करोड़ रुपए ड्रेनेज के लिए चाहिए। वो मिल नहीं रहे। सरकार अगर हर साल करोड़ों रुपए सड़कों के निर्माण आैर मरम्मत पर खर्च करने वाली राशि में से 60 करोड़ रुपए ड्रेनेज के दे दे तो शहर में सड़कों का टूटना कम हो जाए।3. मनमर्जी के कट, कोई एफआईआर नहीं : सादुल सिंह सर्किल के पास 12 फीट सड़क पर डेढ़ फीट चौड़ा कट है। सिर्फ पांच फीट जगह बची है। इससे करीब 50 हजार लोग तकलीफ में हैं। दीनदयाल सर्किल से करणीनगर तक में ऐसे चार जगह कट आैर गड्ढे हैं जहां बाइक से भी निकलना कठिन है। सैकड़ों की संख्या में ऐसे कट मुसीबत बने हैं।

1. एस्टीमेट से 40 प्रतिशत तक कम में उठते हैं टेंडर : पीडब्ल्यूडी ने एक सड़क निर्माण के लिए एक करोड़ की लागत मानी। कंप्टीशन में उस सड़क का टेंडर 60 से 65 लाख में उठ जाता है। ठेकेदार दस फीसदी अपना लाभ लेता है । इस तरह एक करोड़ की सड़क 50 लाख में ही बनती है। 50 प्रतिशत गुणवत्ता बनते वक्त ही कम हो गई। ऐसी सड़क कैसे बारिश झेले।

खस्ताहाल सड़कें शहरवासियों को दर्द दे रही हैं। पीबीएम हॉस्पिटल में बैक पैन के मरीज बढ़ गए हैं। अस्थि रोग विभागाध्यक्ष डॉ. बीएल खजोटिया ने बताया कि ट्रोमा सेंटर में रोज 20 से 30 पेशेंट बैक पैन की शिकायत लेकर आ रहे हैं। दो महीने पहले इनकी संख्या 15 से 20 के बीच थी। हालांकि बैक पैन की हिस्ट्री नहीं है, लेकिन सड़कों पर गड्ढ़ों में उछलने के कारण भी बैक पैन हो सकता है। न्यूरो फिजिशियन डॉ. जगदीश कूकणा का कहना है कि विभाग के आउटडोर में रोज न्यूरो के 250 से 300 पेशेंट आते हैं, जिनमें करीब 20 लो बैक पैन आैर सर्वाइकल के होते हैं। यह अचानक झटका लगने से होता है।