सपोर्टिंग ट्रीटमेंट से 80% मरीज घर में ही ठीक हो सकते हैं, पहले सप्ताह की सजगता ही तय करती है रिकवरी रेट
हम लोग कोविड पैनडेमिक के अंतिम दौर में थे, इसी बीच दूसरी लहर आ गई, जो ज्यादा एग्रेसिव है। कोविड-19 में पहला सप्ताह वायरल रेप्लीकेशन का होता है और दूसरे सप्ताह में इंफ्लेमेशन के कारण जटिलताएं बढ़ जाती हैं। कोविड के 80% मरीज एसिम्प्टोमेटिक या माइल्ड सिम्प्टम वाले होते हैं। उन्हें सिर्फ सपोर्टिव ट्रीटमेन्ट, विटामिन्स और ब्रीदींग एक्सरसाइज और गंभीर पेशेंट के लिए ऑक्सीजन थैरेपी, रेमडेसिविर, स्टीरॉइड एवं एंटीबायाेिटक्स का होता है।
रेमडेसिविर पहले सात दिन में सबसे अधिक कारगर है और इसे अधिकतम 10 दिन तक उपयोग में ले सकते हैं। पहले सप्ताह में यह इंजेक्शन कोविड कम्वेलेशेंट प्लाज्मा वायरल लोड कम करने में काफी मदद करता है। 10 दिन बाद रेमडेसिविर की कोई उपयोगिता नहीं रह जाती। यह बीमारी की अवधि कम करता है, जीवनरक्षक नहीं है। यह एक एंटी वायरल ड्रग है और संक्रमण के शुरुआती दिनों में कारगर साबित होता है। संक्रमण ज्यादा होने और लंग्स खराब होने की स्थिति में इसका इस्तेमाल किया जाता है। कोरोना के हर मरीज को रेमडेसिविर की आवश्यकता नहीं लगती है।
2 सप्ताह का कोविड मैनेजमेंट
पहले सप्ताह में मरीज का ऑक्सीजन लेवल कम (90 से 91) होने के साथ-साथ 6 मिनट चलने (6 मिनट वॉक टेस्ट) से ऑक्सीजन सेचुरेशन 4 से 5 प्रतिशत घटता है, तेज बुखार भी रहता है, लंग्स में सीटी स्कोर 8 से अधिक होता है, साइटोेकाई मार्क्स बढ़े हुए हैं, लिम्फोसाइट व पोलीमोर्फ का अनुपात 3.5 से ज्यादा है, इओसिनाेफिल 0 प्रतिशत हो (जो कि हाई वायरल इंफेक्शन बताता है) तभी रेमडेसिविर इंजेक्शन देना चाहिए अन्यथा यह जीवनरक्षक दवाई नहीं है।
दूसरे सप्ताह में स्टीरॉइड्स (जो कि जीवनरक्षक दवाई का कार्य करती है), खून पतला करने की दवाएं, एंटीबायोटिक्स का अधिक उपयोग होता है। अगर मरीज को साईटोकाईन स्टॉर्म हैै जिसमें कि IL6 व crp नामक कैमिकल बढ़ जाते हैं, तो उन्हें माेनोक्लाेनल एंटीबॉडीज दी जा सकती है। अतः रेमडेसिविर का राेल पहले सप्ताह में वायरल लाेड कम करने में है, एसिम्प्टोमेटिक व माइल्ड डिजीज में इसकाे इस्तेमाल करने की आवश्यकता नहीं है और 10 दिन बाद भी इसकी कोई महत्ता नहीं है। जो मरीज वेन्टीलेटर पर हैं या एक्मो पर हैं, उन्हें रेमडेसिविर की आवश्यकता नहीं होती है।
– डॉ. निशांत श्रीवास्तव
मेंबर स्टेट लेवल एडवर्स इफेक्ट मैनेजमेंट कमेटी काेविड-19 वैक्सीनेशन
मरीजों के फेफड़ों के साथ ही दिल को भी नुकसान पहुंचा रहा है कोविड-19 वायरस, हृदय रोगी डॉक्टर से सलाह लेते रहें
हाल ही एक जाने-माने पत्रकार और टीवी एंकर की हार्ट अटैक से मौत हो गई है, जो कोरोना पॉजिटिव भी थे। हर कोई सोच रहा है कि किसी जवान व्यक्ति की अचानक हार्ट अटैक से मौत कैसे हो गई? क्या कोविड और हार्ट अटैक से संबंध है?
चीन में कोविड-19 की रिपोर्ट में पाया गया कि अस्पताल में भर्ती रहे कई कोरोना मरीजों में कार्डियक ट्रॉपोनिन (हृदय की मांसपेशियों में चोट का मार्कर) ऊंचा पाया गया। दुनिया में हुए कई अध्ययनों के बाद डॉक्टर्स का निष्कर्ष आया- कोरोना हार्ट को कई तरह से नुकसान पहुंचा सकता है। गंभीर संक्रमित मरीजों और कुछ अन्य हल्के संक्रमित रोगियों में वायरस के कारण हृदय की मांसपेशियों में सूजन की समस्या जिसे मायोकार्डिटिस भी कहते हैं, हो सकती है। मांशपेशियों में सूजन होने से हृदय का आकार बड़ा हो जाता है, मगर बहुत कमजोर भी। रक्तचाप कम होने लगता है और तरल पदार्थ फेफड़ों में भरने लगता है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की कार्डियोलॉजिस्ट प्रो. मारियाना फॉनटाना ने गंभीर रूप से संक्रमित मरीजों की एमआरआई से मांसपेशियों की चोट के सबूत खोजे हैं।
दिल में उठ रहे 4 सवाल
1. मुझे हृदय संबंधित समस्या है, क्या मुझे कोविड-19 इन्फेक्शन होने का खतरा है?
जवाब- नहीं, लेकिन इंफेक्शन किसी को भी हो सकता है। दिल के मरीजों में संक्रमण की आशंका ज्यादा होती है।
2. जिन हृदय रोगियों को डायबिटीज या हाइपरटेंशन है, उन्हें ज्यादा खतरा है?
जवाब- हां, डायबिटीज या हाइपरटेंशन जैसी दूसरी बीमारियां भी हैं तो कोरोना से गंभीर नुकसान हो सकता है।
3. मेरी बायपास सर्जरी/एंजियोप्लास्टी हुई है, क्या वैक्सीनेशन सुरक्षित है?
जवाब- हां। इसमें कोई समस्या नहीं है। खून पतला करने जैसी दवाइयां चल रही हैं तो डॉक्टर से परामर्श लेकर वैक्सीनेशन करवा सकते हैं।
4. मेरी हार्ट वॉल्व सर्जरी हुई थी, थक्का रोधी दवा ले रहा हूं। क्या वैक्सीन लगवा सकता हूं?
जवाब- हां, ब्लड थिनर लेवल की जांच और डॉक्टर से परामर्श के बाद आप वैक्सीन लगवा सकते हैं।
– डॉ. लोकेंद्र दवे
अधीक्षक, हमीदिया अस्पताल एवं पल्मोनरी मेडिसिन एक्सपर्ट