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वर्ल्ड कप जीत के 10 साल पूरे:युवराज से पहले आकर धोनी ने बदला पूरा मैच; पैडी अप्टन बोले- माही ने दूर से ही इशारों में कर्स्टन से बैटिंग की इजाजत मांगी थी

नई दिल्ली

2 अप्रैल 2011, भारतीय क्रिकेट इतिहास के पन्नों में दर्ज एक ऐसा दिन है, जिसे शायद ही कोई भुला पाए। इस दिन भारत ने मुंबई के वानखेडे स्टेडियम में 18 साल के वर्ल्ड कप ट्रॉफी के सूखे को खत्म किया था। भारत ने आज ही के दिन फाइनल में श्रीलंका को 6 विकेट से हराकर वर्ल्ड कप जीता। साथ ही 1989 में डेब्यू करने के बाद से 6 वर्ल्ड कप खेल चुके सचिन तेंदुलकर को भी तोहफा दिया।

फाइनल में एक बात जो अब तक याद की जाती है, वह यह है कि कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने अहम मौके पर खुद को बल्लेबाजी क्रम में फॉर्म में चल रहे युवराज सिंह से ऊपर प्रमोट किया था। इसको लेकर भारत के तत्कालीन मेंटल कंडिशनिंग कोच पैडी अप्टन ने कहा कि टूर्नामेंट पर अमिट छाप छोड़ने के धोनी के दृढ़ संकल्प ने भारत को यह टूर्नामेंट दिलाया। अप्टन ने कहा कि युवराज से पहले जाने के फैसले से पहले धोनी ने कर्स्टन से बात की थी। धोनी और कर्स्टन का एक दूसरे पर भरोसा देखने लायक था।

वर्ल्ड कप जीतने के बाद कोच कर्स्टन के साथ जश्न मनाते भारतीय खिलाड़ी।

वर्ल्ड कप जीतने के बाद कोच कर्स्टन के साथ जश्न मनाते भारतीय खिलाड़ी।

कदम इतना महत्वपूर्ण क्यों था?
युवराज के ऑलराउंड प्रदर्शन ने भारत को फाइनल तक पहुंचाने में एक बड़ी भूमिका निभाई थी। वर्ल्ड कप के दौरान, बाएं हाथ के इस खिलाड़ी ने 362 रन बनाए, 15 विकेट लिए, 4 बार मैन ऑफ द मैच अवॉर्ड जीता और प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट से नवाजे गए। उन्होंने क्वार्टर फाइनल में तीन बार के डिफेंडिंग चैम्पियन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ तनावपूर्ण स्थिति से भारत को निकाला था। इसके विपरीत वर्ल्ड कप में धोनी की भूमिका सिर्फ डिसीजन लेने को लेकर रह गई थी। टूर्नामेंट में उनका हाईएस्ट स्कोर 34 रन का था। अगर उनका फाइनल में युवराज से पहले उतरने का फैसला सही नहीं होता, तो उनके जी का जंजाल भी बन सकता था।

किस प्रकार लिया गया फैसला?
अप्टन के मुताबिक यह पूरी तरह से धोनी का अपना फैसला था। अप्टन ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि धोनी वानखेडे के ड्रेसिंग रूम में ग्लास फ्रंट के पीछे थे। हेड कोच गैरी बाहर बैठे थे और मैं उनके ठीक बगल में था। मुझे याद है कि मैंने खिड़की पर एक दस्तक सुनी। गैरी और मैंने जब पीछे मुड़ के देखा तो वहां धोनी खड़े थे। उन्होंने कहा कि अब मैं बल्लेबाजी करने जाऊंगा। उन्होंने इसके लिए सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल किया। गैरी ने सिर हिलाया। दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई। धोनी का मानना था कि यह उनका टाइम है और वह मैदान पर दिखाना चाहते हैं कि वह क्या कर सकते हैं।

धोनी की बायोपिक एमएस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी में भी यह सीन दिखाया गया है। फिल्म में जब धोनी अपने पहले जाने के बारे में बताते हैं, तो कर्स्टन की ओर से आवाज आती है कि युवी पैड अप हैं और तैयार हैं। इस पर धोनी का जवाब होता है कि मुरलीधरन बॉलिंग कर रहा है, मुझे ही जाना चाहिए।

पैडी अप्टन ने भारतीय खिलाड़ियों को मानसिक तौर पर मजबूत बनाने के लिए कई काउंसलिंग करवाई थी।

पैडी अप्टन ने भारतीय खिलाड़ियों को मानसिक तौर पर मजबूत बनाने के लिए कई काउंसलिंग करवाई थी।

इस कदम के पीछे तर्क क्या था?
भारत ने श्रीलंका के 275 रन के लक्ष्य से बहुत पहले वीरेंद्र सहवाग और सचिन तेंदुलकर का विकेट खो दिया था। जब विराट कोहली बाएं हाथ के बल्लेबाज गौतम गंभीर के साथ एक अच्छी पार्टनरशिप करने के बाद आउट हुए, तो मैच फंस गया था।

मुथैया मुरलीधरन यकीनन भारत के लिए सबसे बड़े खतरा थे। वहीं, युवराज का मुरलीधरन के खिलाफ रिकॉर्ड कुछ अच्छा नहीं रहा था। इस महान ऑफ-स्पिनर ने पहले भी कई बार उन्हें परेशानियों में डाला था। एक ही समय में क्रीज पर दो बाएं हाथ का मैदान पर होना मुरली के लिए फायेदमंद हो सकता था।

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ क्वार्टर फाइनल मैच जीतने के बाद युवराज सिंह। वह टूर्नामेंट में शानदार फॉर्म में थे।

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ क्वार्टर फाइनल मैच जीतने के बाद युवराज सिंह। वह टूर्नामेंट में शानदार फॉर्म में थे।

धोनी और मुरली साथ में IPL खेल चुके
दूसरी ओर, धोनी दाएं हाथ के बल्लेबाज हैं और पहले भी कई बार उन्होंने मुरली का आत्मविश्वास के साथ सामना किया था। साथ ही वे मुरली के स्ट्रैटजी को भी जानते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि वे और मुरली 2008 से 2010 IPL में चेन्नई की ओर से खेल चुके थे। श्रीलंका के कप्तान कुमार संगाकारा ने भी युवराज के लिए ही अपने ट्रंप कार्ड को बचा रखा था।

युवराज के आने से पहले तक मुरली ने केवल 39 रन देने के बावजूद 8 ही ओवर फेंके। धोनी ने संगाकारा के प्लान पर पूरी तरह से पानी फेर दिया। अप्टन का कहना है कि 3 विकेट गिरने के बाद धोनी का आना और फाइनल का यह स्टेज धोनी के लिए ही सजा के रखा गया था।

फाइनल में मलिंगा ने सहवाग और सचिन को आउट कर भारत को मुश्किल परिस्थिति में डाल दिया था।

फाइनल में मलिंगा ने सहवाग और सचिन को आउट कर भारत को मुश्किल परिस्थिति में डाल दिया था।

इस फैसले के पीछे और क्या कारण क्या हो सकते हैं?
युवराज को कैंसर था। इसका पता टूर्नामेंट के बाद चला। युवराज की बीमारी फाइनल तक जाते-जाते चरम सीमा तक पहुंच गई थी। युवराज ने फाइनल के बाद बताया था कि उन्हें खून की उल्टी हुई थी। पर उन्होंने चेक नहीं करवाया। भले ही टीम में किसी और को न पता हो, लेकिन एक कप्तान होने के नाते धोनी ने इसे ड्रेसिंग रूम में नोटिस किया होगा। इसे ध्यान में रखते हुए भी यह फैसला महत्वपूर्ण था। कप्तान को खुद टूर्नामेंट पर अपनी छाप छोड़ने की जरूरत थी।

अप्टन ने कहा कि धोनी फाइनल से पहले 7 मैचों में कुछ नहीं कर सके थे। युवराज ने बखूबी टूर्नामेंट में अपना रोल निभाया था। दुनिया में बहुत कम खिलाड़ी हैं जो बड़े पैमाने पर दबाव झेलने में एक्सपर्ट होते हैं। युवराज सिंह उनमें से एक नहीं थे। धोनी में वह काबिलियत थी।

गंभीर और धोनी ने फाइनल में चौथे विकेट के लिए 109 रन की पार्टनरशिप की। गंभीर 97 रन पर आउट हुए।

गंभीर और धोनी ने फाइनल में चौथे विकेट के लिए 109 रन की पार्टनरशिप की। गंभीर 97 रन पर आउट हुए।

धोनी और कर्स्टन को एक दूसरे पर विश्वास
अप्टन बताते हैं कि धोनी और कर्स्टन को एक दूसरे की क्षमताओं पर पूरा भरोसा था। फाइनल के आखिरी कुछ क्षण सिर्फ धोनी के नेतृत्व क्षमता को नहीं बताते हैं, बल्कि यह धोनी के गैरी के साथ संबंधों के बारे में बहुत कुछ बता गए। कर्स्टन ने इस अचानक लिए गए फैसले पर धोनी से बहस नहीं की, न ही उन्होंने इस पर कोई सवाल पूछा। दोनों के बीच इशारा ही एक दूसरे को समझने के लिए काफी था।

अप्टन ने कहा कि धोनी जब पवेलियन की सीढ़ियों से मैदान पर उतर रहे थे, तो मैंने कर्स्टन से एक बात कही थी। मैंने उन्हें कहा था कि क्या आपको पता है कि धोनी हमें विश्व कप दिलाने के लिए जा रहे हैं? उस क्षण मुझे पूरा विश्वास था कि धोनी ट्रॉफी के साथ ही वापस आएंगे।

2011 वर्ल्ड कप विजेता भारतीय टीम।

2011 वर्ल्ड कप विजेता भारतीय टीम।

श्रीलंका ने बनाए थे 6 विकेट पर 274 रन
भारत ने 2011 में आज ही के दिन (2 अप्रैल) श्रीलंका को फाइनल में 6 विकेट से हराकर वर्ल्ड कप अपने नाम किया था। श्रीलंका ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करते हुए 50 ओवर में 6 विकेट पर 274 रन बनाए थे। माहेला जयवर्धने ने 88 गेंदों पर 103 रन की पारी खेली थी। जवाब में भारतीय टीम ने 48.2 ओवर में 4 विकेट पर 277 रन बनाकर मैच जीता था।

गंभीर और धोनी ने भारत को फाइनल जिताया
भारत की ओर से गौतम गंभीर ने 97 रन और कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने नाबाद 91 रन की पारी खेली थी। यह भारत की दूसरा वर्ल्ड कप ट्रॉफी रही। इससे पहले कपिल देव के नेतृत्व में टीम इंडिया ने 1983 वर्ल्ड कप अपने नाम किया था।

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