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सौम्या गुर्जर को करना होगा और इंतजार:निलंबन मामले में हाईकोर्ट में साढ़े तीन घंटे चली सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित, सरकार बोली- जांच प्रभावित न हो इसलिए किया सस्पेंड

जयपुर

राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ में सौम्या गुर्जर को मेयर पद से निलंबित करने के मामले में दायर याचिका पर सोमवार को सुनवाई हुई। सुबह 10 बजे शुरू हुई सुनवाई में राज्य सरकार और सौम्या गुर्जर के अधिवक्ताओं ने अपना-अपना पक्ष रखा। 3 घंटे से ज्यादा चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने इस मामले में फैसला रिजर्व रखा है।

इस मामले में सरकार ने ट्वीट कर कहा कि मेयर को निलंबित इसलिए किया ताकि जांच प्रभावित न हो, लेकिन सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाते हुए सौम्या के अधिवक्ता बोले कि मेयर के पद पर रहते जांच प्रभावित हो सकती है, तो क्या आयुक्त के पद पर रहते हुए नहीं हो सकती थी? सुनवाई जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस सीके सोनगरा की खंडपीठ में हुई। राज्य सरकार की तरफ से महाधिवक्ता एम.एस. सिंघवी और अतिरिक्त महाधिवक्ता अनिल मेहता ने की।

सूत्रों के मुताबिक, सरकार की ओर से सुनवाई के दौरान पक्ष रखा गया कि जिस स्तर पर अधिकारी से जांच करवाई है वह सक्षम है। स्वायत्त शासन निदेशालय ही प्रदेश की सभी नगरीय निकायों पर कंट्रोल करता है। वहां एक सिस्टम है, जिसके तहत उपनिदेशक स्तर का अधिकारी किसी प्रदेश की नगरीय निकाय में नियुक्त तमाम अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की शिकायतों की जांच की जाती है। सरकार की ओर से निलंबन के मामले में पक्ष रखते हुए कहा कि अगर मेयर को निलंबित नहीं करते तो जांच प्रभावित हो सकती थी। लिहाजा जो भी कार्रवाई की गई वह नगर पालिका अधिनियमों को ध्यान में रखकर की गई है।

मेयर के पद पर रहते जांच प्रभावित हो सकती थी तो आयुक्त को क्यों निलंबित नहीं किया?
जानकारों के मुताबिक, सौम्या गुर्जर की तरफ से पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजेन्द्र प्रसाद ने कहा जब मेयर का नाम FIR में था ही नहीं तो निलंबित क्यों किया गया। क्यों आनन-फानन में सभी निर्णय करते हुए एक तरफा फैसला कर दिया। उन्होंने सवाल खड़े किए कि जब मेयर-आयुक्त के मामले की जांच प्रभावित न हो इसके लिए मेयर को निलंबित कर दिया तो आयुक्त को क्यों छोड़ा? क्या आयुक्त के पद पर रहते जांच प्रभावित नहीं हो सकती थी? उन्होंने इस पूरी जांच को केवल फौरी कार्रवाई बताया और नियमों को तोड़ते हुए जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कार्रवाई की गई।

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