श्रीगंगानगर
मेरे पिता अक्सर बताते हैं कि उनका बचपन कैसे मुश्किलों भरा था। हमारा पूरा परिवार किराए के मकान में रहता था। पिता पढ़-लिखकर सीबीआई में जाना चाहते थे, लेकिन पैसे की तंगी ने उनकी पढ़ाई भी पूरी नहीं करने दी। वे 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़ 15 साल की उम्र से पल्लेदारी में लग गए।
दिन-रात बोरियां उठाते, ताकि उनका घर अच्छे से चल सके। तब उन्होंने ठाना कि जो कष्ट मैंने देखे, वो मेरे बच्चों को नहीं देखने दूंगा। अपने इसी संकल्प को पूरा करने के लिए आज भी वे पूरी ईमानदारी से यही काम करते हैं और सीजन में तो 14 से 16 घंटे तक सर्दी-गर्मी की परवाह किए बिना इसी काम में जुटे रहते हैं। हम तीन भाई-बहन हैं और हमारे पिता ने हमें शुरू से ही दो ही बातें सिखाई है।
पहली, कुछ भी बड़ा हासिल करने के लिए खूब मेहनत करो। दूसरा, कोई भी काम छोटा-बड़ा नहीं होता। आज पिता की इन्हीं सीख की बदौलत मेरी बड़ी बहन सोनिया पीएनबी में कर्मी नियुक्त हो चुकी है तो बड़े भाई राजा ने बीकॉम पूरी की है।
पिछले साल मेरे मल्टीपर्पज स्कूल, श्रीगंगानगर में 12वीं आर्ट्स में 94 फीसदी नंबर आए और मैं स्कूल टॉपर रहा। अब हम तीनों भाइयों-बहनों ने भी तय किया है कि हम अपने पैरों पर खड़ा होंगे और पिता को पल्लेदारी छुड़वा उनकी सेवा करेंगे।
13 मई काे सरसाें की ढेरी में पांव फिसलने से हाथ टूटा, लेकिन काम पर जाना नहीं छाेड़ा
पिता का 13 मई काे सरसाें की ढेरी में पांव फिसलने से उनका एक हाथ टूट गया। लेकिन पिता ने कभी छुट्टी नहीं की। उन्होंने अपने टूटे हाथ का पट्टा करवाया है और रोज काम पर जा रहे हैं। हमारे पापा की एक आदत जो हमें अच्छी लगती है, वो ये कि मंडी में सीजन हो या न हो, कभी घर पर नहीं बैठते। उन्होंने रोज मंडी जाना ही है। – जैसा कि बेटे शिवा सुरलिया ने भास्कर संवाददाता मयूर पारीक को बताया।