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Elit scripta volumus cu vim, cum no vidit prodesset interesset. Mollis legendos ne est, ex pri latine euismod apeirian. Nec molestie senserit an, eos no eirmod salutatus.

ब्रीथएनालाइजर का नया विकल्प ‘ईयरमफ’:वैज्ञानिकों ने बनाई कान में लगाने वाली डिवाइस, यह शरीर में अल्कोहल का पता लगाती है; सेंसर करते हैं अलर्ट

ब्रीथएनालाइजर का नया विकल्प ‘ईयरमफ’:वैज्ञानिकों ने बनाई कान में लगाने वाली डिवाइस, यह शरीर में अल्कोहल का पता लगाती है; सेंसर करते हैं अलर्ट

लाइफस्टाइल, साइंस
इंसान ने शराब पी रखी है या नहीं, जल्द ही इसकी जांच के लिए ब्रीथएनालाइजर की जरूरत नहीं होगी। जापानी वैज्ञानिकों ने इसकी जांच के लिए खास तरह की डिवाइस तैयार की है। इसे इयरमफ का नाम दिया गया जो वॉकमैन की तरह दिखता है। इसे कान पर लगाकर पता किया जा सकता है कि इंसान में शराब की मात्रा कितनी है। ऐसे काम करती है डिवाइस ईयरमफ को तैयार करने वाली जापान की टोक्यो मेडिकल एंड डेंटल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है, आमतौर पर मुंह से ब्रीथएनालाइजनर में हवा फूंककर अल्कोहल के लेवल का पता लगाया जाता है, लेकिन शरीर के कई हिस्सों से इसका पता लगाया जा सकता है।वैज्ञानिकों के मुताबिक, सांसों के अलावा शरीर की स्किन, कान और पसीने से भी एथेनॉल (अल्कोहल) गैस के रूप में निकलता है। इसी की मदद से शरीर में अल्कोहल का पता लगाया जा सकता है।हाथ-पैर की स्किन और पसीने के मुकाबले, कान के पास वाली स्किन से अधिक एथेन...
ब्रीथएनालाइजर का नया विकल्प ‘ईयरमफ’:वैज्ञानिकों ने बनाई कान में लगाने वाली डिवाइस, यह शरीर में अल्कोहल का पता लगाती है; सेंसर करते हैं अलर्ट

ब्रीथएनालाइजर का नया विकल्प ‘ईयरमफ’:वैज्ञानिकों ने बनाई कान में लगाने वाली डिवाइस, यह शरीर में अल्कोहल का पता लगाती है; सेंसर करते हैं अलर्ट

लाइफस्टाइल, साइंस
इंसान ने शराब पी रखी है या नहीं, जल्द ही इसकी जांच के लिए ब्रीथएनालाइजर की जरूरत नहीं होगी। जापानी वैज्ञानिकों ने इसकी जांच के लिए खास तरह की डिवाइस तैयार की है। इसे इयरमफ का नाम दिया गया जो वॉकमैन की तरह दिखता है। इसे कान पर लगाकर पता किया जा सकता है कि इंसान में शराब की मात्रा कितनी है। ऐसे काम करती है डिवाइस ईयरमफ को तैयार करने वाली जापान की टोक्यो मेडिकल एंड डेंटल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है, आमतौर पर मुंह से ब्रीथएनालाइजनर में हवा फूंककर अल्कोहल के लेवल का पता लगाया जाता है, लेकिन शरीर के कई हिस्सों से इसका पता लगाया जा सकता है।वैज्ञानिकों के मुताबिक, सांसों के अलावा शरीर की स्किन, कान और पसीने से भी एथेनॉल (अल्कोहल) गैस के रूप में निकलता है। इसी की मदद से शरीर में अल्कोहल का पता लगाया जा सकता है।हाथ-पैर की स्किन और पसीने के मुकाबले, कान के पास वाली स्किन से अधिक एथेन...
डायबिटीज की दवा रोकेगी हार्ट अटैक:हाई ब्लड शुगर कंट्रोल करने वाली दवा ‘एमपैग्लीफ्लोजिन’ हार्ट के काम करने की क्षमता बढ़ाती है और अटैक का खतरा घटता है

डायबिटीज की दवा रोकेगी हार्ट अटैक:हाई ब्लड शुगर कंट्रोल करने वाली दवा ‘एमपैग्लीफ्लोजिन’ हार्ट के काम करने की क्षमता बढ़ाती है और अटैक का खतरा घटता है

लाइफस्टाइल, साइंस
अब डायबिटीज की दवा से हार्ट फैल के मामले भी कंट्रोल किए जा सकेंगे। ब्रिटिश हार्ट फाउंडेशन की हालिया स्टडी के मुताबिक, हाई ब्लड शुगर को कंट्रोल करने वाली दवा 'एमपैग्लीफ्लोजिन' से मरीजों का हार्ट फेल होने से बचाया जा सकता है। यह दवा लेने के मात्र तीन महीने के अंदर हार्ट के काम करने क्षमता में इजाफा होता है और हार्ट फेल होने का खतरा घट जाता है। वजन घटा और ब्लड प्रेशर में सुधार हुआरिसर्च कहती है, जो मरीज ट्रायल में शामिल हुए उनका वजन भी कम हुआ और ब्लड प्रेशर में भी सुधार हुआ। शोधकर्ताओं का कहना है, टाइप-2 डायबिटीज तीन गुना तक हृदय रोगों का खतरा बढ़ाती है। वहीं, एक तिहाई लोगों की हृदय रोगों से मौत हो जाती है। ऐसे काम करती है दवाशोधकर्ताओं का कहना है, दवा 'एमपैग्लीफ्लोजिन' शरीर में पहुंचकर अतिरिक्त शुगर को यूरिन के रास्ते बाहर निकालने का काम करती है। यह शुगर को ब्लड में पहुंचने से रोकती ह...
अटॉप्सी रिपोर्ट में खुलासा:कोरोना से मरने वाले 60% मरीजों की मांसपेशियों में सूजन, यह हार्ट और किडनी में होने वाली सूजन से काफी अलग; रिसर्च में दावा

अटॉप्सी रिपोर्ट में खुलासा:कोरोना से मरने वाले 60% मरीजों की मांसपेशियों में सूजन, यह हार्ट और किडनी में होने वाली सूजन से काफी अलग; रिसर्च में दावा

लाइफस्टाइल, साइंस
कोरोना से मरने वाले 60 फीसदी से अधिक मरीजों की मांसपेशियों में सूजन रहती है। यह बात कोरोना के 43 मरीजों की अटॉप्सी रिपोर्ट से सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक, इन ग्रुप में शामिल 10 में से 6 मरीज में कमजोरी और मांसपेशियों में सूजन थी। रिसर्च करने वाली जर्मनी की एक यूनिवर्सिटी के मुताबिक, कोरोना के मरीजों में जो सूजन देखी गई है वो आमतौर पर हार्ट और किडनी में होने वाली सूजन से अलग थी। संक्रमित में मसल इंजरी खतरा बढ़ाती हैशोधकर्ताओं के मुताबिक, सूजन की गंभीरता देखकर पता चलता है कि क्यों कोरोना के मरीजों में मसल इंजरी होने के बाद मौत हो जाती है। जो सर्वाइव कर भी जाते हैं तो उन्हें लम्बे समय तक कमजोरी का सामना करना पड़ता है।इससे पहले सामने आई एक रिसर्च में सामने आया था कि मसल इंजरी से जूझने वाले कोरोना के मरीज की हालत नाजुक होने या मौत का खतरा ज्यादा है। दो तिहाई मरीजों में कमजोरी और द...
इजरायल के वैज्ञानिकों को मिली कामयाबी:पहली बार लैब में तैयार हुआ ‘ब्रेस्ट मिल्क’, दावा; इसमें वो सभी पोषक तत्व जो मां के दूध में होते हैं; अगले 3 साल में होगा उपलब्ध

इजरायल के वैज्ञानिकों को मिली कामयाबी:पहली बार लैब में तैयार हुआ ‘ब्रेस्ट मिल्क’, दावा; इसमें वो सभी पोषक तत्व जो मां के दूध में होते हैं; अगले 3 साल में होगा उपलब्ध

लाइफस्टाइल, साइंस
दुनिया में पहली बार लैब में नवजात के लिए ब्रेस्ट मिल्क को तैयार किया है। इजरायल के स्टार्टअप 'बायोमिल्क' ने महिलाओं की स्तन कोशिकाओं से दूध तो बनाने में कामयाबी पाई है। कंपनी का दावा है कि इस दूध में ज्यादातर वो सभी पोषक तत्व हैं जो मां के दूध में पाए जाते हैं। दावा- मां के दूध जैसा मिल्ककंपनी की चीफ साइंस ऑफिसर और को-फाउंडर डॉ. लीला स्ट्रिकलैंड का कहना है, हमारे प्रोडक्ट में पोषक तत्वों की मात्रा किसी भी दूसरे प्रोडक्ट से ज्यादा है। ये मां के दूध से काफी मिलता-जुलता है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फैटी एसिड्स और बायोएक्टिव लिपिड्स जैसे सभी पोषक तत्व हैं जो मां के दूध में मौजूद होते हैं। सिर्फ एंटीबॉडी का अंतर हैडॉ. लीला का कहना है, लैब में तैयार ब्रेस्ट मिल्क और मां के दूध में एक ही अंतर है वो है एंटीबॉडी। मां के दूध से बच्चे में रोगों से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज बनती हैं, जबकि इस...
सेहत के सुझाव:घर पर डिटॉक्स वाटर बनाएं तो उसे घंटे में पिएं, इम्यूनिटी बूस्टर भी हैं ये डिफ्यूज्ड ड्रिंक्स

सेहत के सुझाव:घर पर डिटॉक्स वाटर बनाएं तो उसे घंटे में पिएं, इम्यूनिटी बूस्टर भी हैं ये डिफ्यूज्ड ड्रिंक्स

लाइफस्टाइल, साइंस
हमारी लाइफस्टाइल, खानपान की वजह से हमारे शरीर में टॉक्सिस जमा होने लगते हैं और धीरे-धीरे बीमारियां होती हैं इसलिए समय-समय पर डिटॉक्सिफिकेशन करना जरूरी होता है। वैसे तो इसके लिए कई तरीके होते हैं लेकिन सबसे आसान है वाटर डिटॉक्स। लेकिन, शहर के फूड ब्लॉगर और डाइटिशियन का सुझाव है कि अगर आप घर पर ही डिटॉक्स वाटर बना रहे हैं, तो जरूरी है कि 3 से 4 घंटे के अंदर पी लें। फूड ब्लॉगर मुद्रा केसवानी ने कहा कि मुझे हाल ही में कोरोना हुआ था जिसमें इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए मैंने तुलसी और बैसिल के पानी का इस्तेमाल किया। इससे इम्यून सिस्टम मजबूत हुआ। ये दोनों ही डिटॉक्स वाटर रूम टेम्प्रेचर पर ही होने चाहिए। जो जल्द ही असरदार होता है। साथ ही, बॉडी को हाइड्रेट और डिटॉक्स रखना जरूरी है। इसके अलावा, नारियल पानी में फ्रूट्स एंड वाटरमेलन जैसी चीजें बॉडी हाइड्रेट करने में काफी मदद करती है। घर में मौजूद ...
जन संकल्प से हारेगा कोरोना:6 मिनट वॉक करें, ऑक्सीजन सेचुरेशन 4-5% घट जाए और लंग्स में सीटी स्कोर 8 से ज्यादा हो तो ही अस्पताल की जरुरत

जन संकल्प से हारेगा कोरोना:6 मिनट वॉक करें, ऑक्सीजन सेचुरेशन 4-5% घट जाए और लंग्स में सीटी स्कोर 8 से ज्यादा हो तो ही अस्पताल की जरुरत

लाइफस्टाइल, साइंस
सपोर्टिंग ट्रीटमेंट से 80% मरीज घर में ही ठीक हो सकते हैं, पहले सप्ताह की सजगता ही तय करती है रिकवरी रेट हम लोग कोविड पैनडेमिक के अंतिम दौर में थे, इसी बीच दूसरी लहर आ गई, जो ज्यादा एग्रेसिव है। कोविड-19 में पहला सप्ताह वायरल रेप्लीकेशन का होता है और दूसरे सप्ताह में इंफ्लेमेशन के कारण जटिलताएं बढ़ जाती हैं। कोविड के 80% मरीज एसिम्प्टोमेटिक या माइल्ड सिम्प्टम वाले होते हैं। उन्हें सिर्फ सपोर्टिव ट्रीटमेन्ट, विटामिन्स और ब्रीदींग एक्सरसाइज और गंभीर पेशेंट के लिए ऑक्सीजन थैरेपी, रेमडेसिविर, स्टीरॉइड एवं एंटीबायाेिटक्स का होता है। रेमडेसिविर पहले सात दिन में सबसे अधिक कारगर है और इसे अधिकतम 10 दिन तक उपयोग में ले सकते हैं। पहले सप्ताह में यह इंजेक्शन कोविड कम्वेलेशेंट प्लाज्मा वायरल लोड कम करने में काफी मदद करता है। 10 दिन बाद रेमडेसिविर की कोई उपयोगिता नहीं रह जाती। यह बीमारी की अवधि ...
डॉक्टर दंपती की तकनीक और रिटायर्ड वैज्ञानिक की मदद से इंदौर के उधोगपति ने आधी कीमत में बना दिया वेंटिलेटर

डॉक्टर दंपती की तकनीक और रिटायर्ड वैज्ञानिक की मदद से इंदौर के उधोगपति ने आधी कीमत में बना दिया वेंटिलेटर

लाइफस्टाइल, साइंस
कोरोना के गंभीर मरीजों को आ रही वेंटिलेटर की समस्या को देखते हुए शहर के एक उद्योगपति ने आधी कीमत में देसी वेंटिलेटर बना लिया है। विदेश से लौटे डॉक्टर दंपती की तकनीक और कैट के रिटायर्ड सांइटिस्ट की मदद से यह हो सका है। उनके वेंटिलेटर को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंजूरी दे दी है। पोलोग्राउंड में साईं प्रसाद उद्योग के संचालक संजय पटवर्धन ने बताया कि नान इन्वेजिव टाइप का वेंटिलेटर 10 माह में तैयार हुआ है। इसकी कीमत करीब 50 हजार है, जबकि विदेशी वेंटिलेटर एक-डेढ़ लाख में मिलते हैं। यह कम ऑक्सीजन फ्लो में भी सपोर्ट करता है। सिलेंडर में ऑक्सीजन खत्म होने पर तीन-चार घंटे वातावरण से ऑक्सीजन लेकर मरीज को दे सकेगा। मरीज को कहीं शिफ्ट करना हो या फिर छोटी जगहों पर मरीज गंभीर हो जाए और संक्रमण 50-60 फीसदी हो तो ऐसी स्थिति में यह जिंदगी बचा सकता है। इसका वजन दो किलो है, जिससे इसे आसानी से कहीं भी...
सेहत के लिए:घर पर डिटॉक्स वाटर बनाएं तो उसे 4 घंटे में पिएं, इम्युनिटी बूस्टर भी हैं ये डिफ्यूज्ड ड्रिंक्स

सेहत के लिए:घर पर डिटॉक्स वाटर बनाएं तो उसे 4 घंटे में पिएं, इम्युनिटी बूस्टर भी हैं ये डिफ्यूज्ड ड्रिंक्स

लाइफस्टाइल, साइंस
हमारी लाइफस्टाइल, खान-पान की वजह से हमारे शरीर में टॉक्सिस जमा होने लगते हैं और धीरे-धीरे कई बीमारियां होती हैं इसलिए समय-समय पर डिटॉक्सीफिकेशन करना जरूरी होता है। वैसे तो इसके कई तरीके होते हैं लेकिन सबसे आसान है वाटर डिटॉक्स। लेकिन, शहर के फूड ब्लॉगर और डाइटिशियन का सुझाव है कि अगर आप घर पर ही डिटॉक्स वाटर बना रहे हैं, तो जरूरी है कि 3 से 4 घंटे के अंदर पी लें। बॉडी को हाइड्रेट और डिटॉक्स रखना जरूरी फूड ब्लॉगर मुद्रा केसवानी ने कहा कि मुझे हाल ही में कोरोना हुआ था जिसमें इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए मैंने तुलसी और बैसिल के पानी का इस्तेमाल किया। इससे इम्यून सिस्टम मजबूत हुआ। ये दोनों ही डिटॉक्स वाटर रूम टेम्प्रेचर पर ही होने चाहिए। जो जल्द ही असरदार होता है। साथ ही, बॉडी को हाइड्रेट और डिटॉक्स रखना जरूरी है। इसके अलावा, नारियल पानी में फ्रूट्स एंड वाटरमेलन जैसी चीजें बॉडी हाइड्रेट क...
न्यू स्टडी:मां ही नहीं, पिता के खानपान-जीवनशैली का असर भी गर्भ में पल रहे शिशु पर होता है, इसमें सुधार कर बच्चे को अच्छी सेहत दे सकते हैं

न्यू स्टडी:मां ही नहीं, पिता के खानपान-जीवनशैली का असर भी गर्भ में पल रहे शिशु पर होता है, इसमें सुधार कर बच्चे को अच्छी सेहत दे सकते हैं

साइंस
अब तक यह मान्यता रही है कि गर्भावस्था के दौरान मां के खानपान और सक्रिय रहने से बच्चे की सेहत पर अच्छा असर पड़ता है। शोध भी इसी बात पर बल देते रहे हैं। पर नई स्टडी में खुलासा हुआ है कि मां ही नहीं पिता के खानपान, एक्सरसाइज की आदतों और जीवन शैली का प्रभाव भी बच्चे पर पड़ता है। वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन और अन्य संस्थानों की ताजा स्टडी में कहा गया है कि जो दंपती पैरेंट्स बनने जा रहे हैं उनकी खानपान की आदतें, जीवनशैली और जेनेटिक्स जन्म लेने वाले बच्चे की अच्छी सेहत तय कर सकती हैं। पिता का फिजिकली एक्टिव रहना भी जरूरी शोधकर्ताओं के मुताबिक गर्भ में शिशु के आने से पहले जो माता-पिता वसा युक्त खाना ज्यादा खाते हैं, उनके बच्चों में मेटाबॉलिज्म से जुड़ी समस्याओं का जोखिम उच्च होता है। पर यदि माएं गर्भावस्था के दौरान एक्सरसाइज करती हैं तो यह जोखिम पूरी तरह खत्म हो सकता है। यहां ...