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ठगने वाली जयपुर की उल्लू गैंग:देसी उल्लू को दुर्लभ प्रजाति का बता 50 लाख में खरीदने का नाटक करते, सौदा होने से पहले मार देते, पीड़ित रुपए मांगता तो थमा देते नकली नोट

जयपुर

जयपुर पुलिस ने उल्लू गैंग को पकड़ा है। गैंग में शामिल आरोपी पहले तो देसी उल्लू को 5 लाख रुपए में बेचते हैं। गैंग के दूसरे सदस्य, जिसने उल्लू खरीदा है, उससे 50 लाख रुपए में खरीदने का नाटक कर झांसा देते हैं। इसके बाद जैसे ही सौदे की बात आती है तो गैंग के सदस्य ही उस उल्लू को मार देते हैं। इनका कारनामा यहीं नहीं रुकता था। ठगी का शिकार पीड़ित जब रुपए लौटाने का दबाव बनाता तो इस गैंग के लोग ऊपर-नीचे असली नोट रख देते थे और बीच में नकली नोट। मामला सामने आया तो पुलिस ने कार्रवाई करते हुए 2 आरोपियों को गिरफ्तार किया है। पूछताछ में बताया कि गैंग में करीब 7 लोग हैं, जो अलग-अलग टीम बनाकर ठगी करते थे। हालांकि पुलिस इस सवाल का जवाब नहीं दे पाई कि उल्लू को कैसे मारा जाता था।

प्रागपुरा तहसील में खेलना गांव निवासी राजेंद्र स्वामी के साथ इसी तरह की वारदात हुई। राजेंद्र स्वामी ने 1 जुलाई को प्रागपुरा थाने में मुकदमा दर्ज करवाया था। उसने बताया कि परिचित आरोपी बिशनलाल सैनी उर्फ विष्णु उसका दोस्त है। उसने राजेंद्र स्वामी को बताया कि वह उसे लाखों रुपए के फायदे का काम करवा सकता है। वे दोनों आपस में मिलकर सस्ते दाम पर एक उल्लू खरीदेंगे। इसी उल्लू को बाहर की पार्टी को 40-45 लाख रुपए के बीच में बेच देंगे। इस तरह झांसे में आकर राजेंद्र ने 6 लाख रुपए उल्लू गैंग को सौंप दिए। फिर उल्लू को मरा बताकर दूसरी गैंग ने खरीदने से मना कर दिया। रुपए लौटाने का दबाव डाला तो 500-500 रुपए की तीन गडि्डयां दे दीं। इसमें ऊपर असली नोट लगा रखा था। बाकी नीचे मनोरंजन वाले नकली नोट थे। ठगी का पता चलने पर पीड़ित ने शिकायत दर्ज करवाई। इसके बाद शाहपुरा थानाप्रभारी विजेंद्र सिंह के नेतृत्व में दोनों बदमाशों को पकड़ा गया।

इस तरह ठगी की वारदात करते हैं, दो टीम में बंटे एक ही गैंग के बदमाश

जयपुर ग्रामीण एसपी शंकरदत्त शर्मा ने बताया कि गिरफ्तार आरोपी बिशनलाल उर्फ विष्णु सैनी (20) निवासी बणिया का बास, देवीपुरा, विराटनगर जयपुर है। दूसरा आरोपी रोशन कुमार बावरिया (24) जयपुर जिले में प्रागपुरा स्थित गुड्‌डा ठिकरिया गांव का रहने वाला है। पूछताछ में सामने आया कि गैंग में 5-7 लोग हैं, जो अलग-अलग टीमें बना लेते हैं।

इनमें एक गैंग पीड़ित से उल्लू के खरीदार बनकर सम्पर्क करती है। पीड़ित को बातचीत में झांसा देकर यह विश्वास दिलाती है कि वे 40 से 50 लाख रुपए में दुर्लभ प्रजाति का उल्लू खरीद लेंगे। जबकि गैंग की दूसरी टीम उल्लू बेचने वाली बनकर ठगी के शिकार व्यक्ति से संपर्क करती हैं। वे अपने पास दुर्लभ प्रजाति का उल्लू होना बताकर पांच से छह लाख रुपए में पीड़ित को साधारण उल्लू बेच देते हैं।

उल्लू के खरीदार व बेचने वाले एक ही गैंग के होते हैं

कोटपूतली एएसपी रामकुमार कस्वां ने बताया कि यह गैंग पीड़ित को जरा भी भनक नहीं लगने देती है कि वे सब एक ही गिरोह के हैं। ये टारगेट बनाने के लिए मीडिएटर को फांसते हैं। गैंग पहले मीडिएटर के जरिए पीड़ित को पांच छह लाख रुपए में उल्लू बेच देती हैं। करीब एक-दो घंटे बाद गैंग की दूसरी टीम खरीदार बनकर आती है। इसी बीच गैंग के बदमाश पीड़ित को चकमा देकर उल्लू को मार देते हैं। जब खरीददार टीम 50 लाख रुपए में उल्लू खरीदने आती है। तब उसे उल्लू मरा हुआ मिलता है तो वह खरीदने से इनकार कर देती है।

खुद ही उल्लू को मारकर पीड़ित को उसका दुर्भाग्य बताकर देते हैं सांत्वना

पूछताछ में सामने आया कि उल्लू के मरा होने पर गैंग पीड़ित को सांत्वना देती है कि आपकी किस्मत खराब है कि उल्लू मर गया है। यह पूरा घटनाक्रम इतनी चतुराई से किया जाता है। पीड़ित को अहसास भी नहीं होता है कि वह ठगा गया है। वह अपना दुर्भाग्य मान लेता है कि खरीदने के बाद उल्लू मर गया। जब वह समझ पाता, तब तक गैंग वहां से भाग निकलती है।

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