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पौधे भी तनाव से जूझते हैं:इजरायली वैज्ञानिकों ने बताया, कैसे तनाव में रहने वाले पौधे रोशनी बिखेरते हैं, आलू के पौधे पर प्रयोग करके समझाया; जानिए ऐसा होता क्यों है

पौधे भी तनाव से जूझते हैं:इजरायली वैज्ञानिकों ने बताया, कैसे तनाव में रहने वाले पौधे रोशनी बिखेरते हैं, आलू के पौधे पर प्रयोग करके समझाया; जानिए ऐसा होता क्यों है

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इजरायल वैज्ञानिकों ने आलू के पेड़ में इस तरह के बदलाव किए हैं कि यह तनाव में होने पर रोशनी बिखेरता है। पेड़ कैसा महसूस करते हैं अब तक इनके हाव-भाव से समझना मुश्किल था। नतीजा, ये डैमेज हो जाते थे। यरुसलम की हेब्रयू यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है, अब पौधों की जरूरत को बेहतर तरीके से समझा जा सकेगा। पेड़ तनाव में कब होते हैं?वैज्ञानिकों के मुताबिक, पेड़ भी तनाव से जूझते हैं। जब इनमें पानी की कमी होती है, ठंड जरूरत से ज्यादा पड़ती है, सूरज की रोशनी नहीं मिलती है या तेज धूप पड़ती है तो ये तनाव में चले जाते हैं। अमूमन इनके तनाव के लक्षण इंसान समझ नहीं पाते हैं। इसलिए लगातार इन स्थितियों को झेलते हुए ये खत्म होने लगते हैं। ऐसे तैयार किया पौधाशोधकर्ता डॉ. शिलो रोसेनवासेर और उनकी टीम ने तनाव को समझने के लिए आलू के पौधे में जेनेटिकली बदलाव किया। पौधे के क्लोरोप्लास्ट में एक नए जीन को डाला...
टीबी खत्म होने के बाद खतरा घटाने वाली दवा:कॉमन एंटीबायोटिक डॉक्सीसायक्लीन टीबी के मरीजों को राहत देती है, यह फेफड़ों को डैमेज होने से बचाने के साथ रिकवरी भी तेज करती है

टीबी खत्म होने के बाद खतरा घटाने वाली दवा:कॉमन एंटीबायोटिक डॉक्सीसायक्लीन टीबी के मरीजों को राहत देती है, यह फेफड़ों को डैमेज होने से बचाने के साथ रिकवरी भी तेज करती है

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कॉमन एंटीबायोटिक टीबी के इलाज में असरदार साबित होती है। 30 मरीजों पर हुए ट्रायल में सामने आया है कि एंटीबायोटिक डॉक्सीसायक्लीन को टीबी के ट्रीटमेंट के साथ दिया जाए है तो फेफड़ों को डैमेज होने से बचा सकती है। टीबी के ट्रीटमेंट के बाद यह मरीजों की रिकवरी को भी तेज करती है। यह दावा सिंगापुर के नेशनल यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल की रिसर्च में किया गया है। डॉक्सीसायक्लीन क्यों है जरूरी, यह समझिएक्लीनिकल इन्वेस्टिगेशन जर्नल में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, टीबी की वजह मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस बैक्टीरिया का संक्रमण है। इस बैक्टीरिया के संक्रमण के बाद फेफड़े में एक खास जगह पर धीरे-धीरे बैक्टीरिया की संख्या बढ़ने लगती है। इस जगह को कैविटी कहते हैं। टीबी की दवाएं कैविटी पर पूरी तरह से असर नहीं करतीं। इसलिए टीबी का इलाज पूरा होने के बाद भी सांस लेने में दिक्कत, फेफड़ों में अकड़न और ब्रॉन्काइटिस का खत...
ब्रेस्ट कैंसर के इलाज का नया तरीका:सुई से ब्रेस्ट में मौजूद कैंसर की गांठ को खींचकर निकाला जा सकेगा, वैज्ञानिकों का दावा; मात्र 60 मिनट में निकल जाएगा ट्यूमर

ब्रेस्ट कैंसर के इलाज का नया तरीका:सुई से ब्रेस्ट में मौजूद कैंसर की गांठ को खींचकर निकाला जा सकेगा, वैज्ञानिकों का दावा; मात्र 60 मिनट में निकल जाएगा ट्यूमर

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वैज्ञानिकों ने ब्रेस्ट कैंसर के इलाज का नया तरीका खोजा है। वैज्ञानिकों ने खास तरह की वैक्यूम डिवाइस तैयार की है। यह डिवाइस एक सुई के जरिए शरीर से ब्रेस्ट में मौजूद छोटी और मध्यम आकार के कैंसर की गांठ को खींच निकालती है। वैज्ञानिकों का दावा है कि कैंसर की गांठ निकालने में मात्र 60 मिनट का समय लगता है। सर्जरी का यह तरीका मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट ने विकसित किया है। इसका ट्रायल किया जा रहा है। 1 इंच तक की गांठ निकाली जा सकेगीवैज्ञानिकों का कहना है, वैक्यूम टेक्नोलॉजी से ब्रेस्ट कैंसर का इलाज करने के लिए रिसर्च की जा रही है। इस तकनीक से ब्रेस्ट में मौजूद 1 इंच तक की गांठ को निकाला जा सकता है। यह तरीका पुरानी सर्जरी के मुकाबले से कम परेशान करने वाला है। कैंसर की गांठ निकालने के लिए मरीज के पूरे शरीर को एनेस्थीसिया देने की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे निकालते हैं कैंसर की गा...
सुसाइड के मामलों पर WHO की रिपोर्ट:दुनियाभर में हर सौ में एक मौत की वजह सुसाइड, महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में मौत के मामले दोगुने से ज्यादा; महामारी ने मौत के कारण भी बढ़ाए

सुसाइड के मामलों पर WHO की रिपोर्ट:दुनियाभर में हर सौ में एक मौत की वजह सुसाइड, महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में मौत के मामले दोगुने से ज्यादा; महामारी ने मौत के कारण भी बढ़ाए

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में हर 100 में से एक मौत की वजह सुसाइड है। कोरोना के कारण सुसाइड के लिए उकसाने वाले फैक्टर बढ़े हैं। 2019 में 7 लाख मौतें सिर्फ सुसाइड से हुई हैं। यह आंकड़ा एचआईवी, मलेरिया जैसी बीमारियों से होने वाली मौतों से भी ज्यादा है। WHO के मुताबिक, महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में सुसाइड के मामले दोगुने से अधिक थे। महिलाओं में एक लाख पर यह आंकड़ा 5.4 फीसदी था। वहीं, पुरुषों में यह 12.6 फीसदी था। सुसाइड के मामले रोकने के लिए WHO ने लिव-लाइफ नाम से एक सीरिज शुरू की है। अधिक आय वाले देशों में मौत के मामले ज्यादाअधिक आय वाले देशों के सुसाइड से मौत के मामले पुरुषों में अधिक देखे गए। वहीं, महिलाओं में सुसाइड के सबसे ज्यादा मामले मध्यम आय वाले देशों में सामने आए। यह आंकड़ा एक लाख महिलाओं में 7.1 फीसदी था। सुसाइड के मामले सबसे ज्यादा 1...
एम्स की रिसर्च:आर्थराइटिस और ग्लूकोमा के इलाज में योग असरदार, यह थैरेपी की तरह काम करता है; सूजन और घाव को घटाने का काम करता है

एम्स की रिसर्च:आर्थराइटिस और ग्लूकोमा के इलाज में योग असरदार, यह थैरेपी की तरह काम करता है; सूजन और घाव को घटाने का काम करता है

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आर्थराइटिस और ग्लूकोमा जैसी बीमारियों में भी योग असरदार है। एम्स के एक्सपर्ट्स ने अपनी हालिया रिसर्च में इसकी पुष्टि भी की है। एक्सपर्ट्स का कहना है, रिसर्च में साबित हो चुका है कि मेडिटेशन ग्लूकोमा और रूमेटॉयड आर्थराइटिस के इलाज एक एडिशनल थैरेपी की तरह काम करती है। ऐसे काम करता है योगएम्स से जुड़े राजेन्द्र प्रसाद सेंटर ऑफ ऑप्थेलेमिक साइंसेज के एक्सपर्ट्स तनुज दादा और कार्तिकेय महालिंगम का कहना है, ग्लूकोमा के मरीजों में मेडिटेशन मस्तिष्क का ब्लड सर्कुलेशन बढ़ृाता है और आंखों को नुकसान पहुंचाने वाले इंट्राकुलर प्रेशर को घटाता है। यह सूजन घटाता है, घाव को भरता है और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करता है। एक्सपर्ट्स कहते हैं, हालिया रिसर्च में यह जानने की कोशिश की गई कि मेडिटेशन का ट्रेब्रिकुलर मेशवर्क जीन एक्सप्रेशन पर क्या असर पड़ता है। ग्लूकोमा की बीमारी में इस जीन का अहम रोल होता है। ऐ...
सांस लेने और छोड़ने का तरीका दिमाग पर असर छोड़ता है, डिप्रेशन, पाचन में गड़बड़ी और हृदय रोगों में फायदा होता है; जानिए योग कैसे काम करता है

सांस लेने और छोड़ने का तरीका दिमाग पर असर छोड़ता है, डिप्रेशन, पाचन में गड़बड़ी और हृदय रोगों में फायदा होता है; जानिए योग कैसे काम करता है

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योग शब्द का संस्कृत में पहली बार इस्तेमाल ऋगवेद में किया गया। यह संस्कृत के शब्द 'युज' से बना है, जिसका मतलब है जोड़ना या जुड़ना। विज्ञान भी योग के बारे में यही बात कहता है, लेकिन अलग तरह से। योग कैसे काम करता है, इस पर बॉस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने रिसर्च की है। शोधकर्ता क्रिस स्ट्रीटर और उनकी रिसर्च टीम कहती है, इंसान का नर्वस सिस्टम यानी मस्तिष्क पूरे शरीर को जोड़ने और स्वस्थ रखने में मदद करता है। इसमें योग भी अहम रोल निभाता है। आज विश्व योग दिवस है, इस मौके पर जानिए आखिर योग काम कैसे करता है.... वेगस नर्व योग से शरीर को जोड़े रखती हैशोधकर्ताओं के मुताबिक, योग का सीधा असर वेगस नर्व पर पड़ता है। यह शरीर की सबसे लम्बी तंत्रिका है। इसकी शुरुआत मस्तिष्क से होती है और पूरे शरीर में फैली होती है। इसके काम करने का असर हमारे श्वांस तंत्र, पाचन और हृदय पर होता है। ...
देश के 92.6% लोग मानते हैं योग जीवन बदल सकता है, 91.5% बोले; यह डायबिटीज कंट्रोल करने में असरदार; योग करने में बुजुर्ग सबसे आगे

देश के 92.6% लोग मानते हैं योग जीवन बदल सकता है, 91.5% बोले; यह डायबिटीज कंट्रोल करने में असरदार; योग करने में बुजुर्ग सबसे आगे

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नई दिल्ली देश में 92.6% लोग मानते हैं योग इंसान का जीवन बदल सकता है। 91.5% देशवासियों का कहना है, योग डायबिटीज कंट्रोल करने में मदद करता है। ये आंकड़े देशभर में हुए सर्वे में सामने आए हैं। योग के बारे में लोग क्या सोचते हैं, इसे समझने के लिए स्वास्थ्य और आयुष मंत्रालय ने देशभर में सर्वे किया। सर्वे में 1,62,330 लोग शामिल हुए। सर्वे रिपोर्ट कहती है, देश की 11.8 फीसदी ही योग करती है। सबसे ज्यादा योग करने वाले दक्षिण भारत में हैं लेकिन सबसे ज्यादा दक्षिण के लोग मानते हैं कि योग जीवन को बदल सकता है। ऐसा मानने वालों में भी सबसे ज्यादा निम्न आय वर्ग के लोग शामिल हैं।योग करने में बुजुर्गों ने युवाओं को पीछे छोड़ासर्वे के मुताबिक, महिलाएं और पुरुष दोनों ही योग करने के मामले बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। इनमें युवाओं के मुकाबले 60-79 साल बुजुर्गों की संख्या (12.1%) सबसे ज्यादा है, जबकि युवाओं ...
चीनी वैज्ञानिकों का चौंकाने वाला खुलासा:जिराफ से भी लम्बे होते थे गैंडे, इनका वजन 4 अफ्रीकी हाथियों के बराबर था; चीन में मिले विशाल गैंडों के जीवाश्म

चीनी वैज्ञानिकों का चौंकाने वाला खुलासा:जिराफ से भी लम्बे होते थे गैंडे, इनका वजन 4 अफ्रीकी हाथियों के बराबर था; चीन में मिले विशाल गैंडों के जीवाश्म

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कभी गैंडे जिराफ से भी लम्बे होते थे, चीन में इसके प्रमाण भी मिले हैं। उत्तरी-पश्चिमी चीन के शोधकर्ताओं ने विशाल गैंडों की ऐसी प्रजाति के जीवाश्म खोजे हैं जो जिराफ से भी लम्बे थे। वैज्ञानिकों का कहना है, 2.65 करोड़ साल पहले ये धरती पर चहलकदमी करते हुए पाए जाते थे। चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस के शोधकर्ताओं के मुताबिक, इन विशाल गैंडों को पैरासेराथेरियम लिनक्सियान्स के नाम से जाना जाता है। इनका वजन करीब 21 टन था, जो 4 अफ्रीकी हाथियों के बराबर था। 7 मीटर तक पहुंच सकता था सिरकम्युनिकेशन बायलॉजी जर्नल में पब्लिश रिपोर्ट के मुताबिक, ये गैंडे बिना सींग वाले थे और इनका सिर पेड़ों से पत्तियां खाने के लिए 7 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच सकता था। चीन के गांसू प्रांत में मिली विशाल गैंडे की खोपड़ी और जबड़ों की हड्डियां की जांच की गई। जांच में सामने आया कि ये ओलिगोसीन युग के अंतिम दौर की है। पाकिस्तान में प...
अमेरिकी वैज्ञानिक का दावा:इंसान के दिमाग को पढ़ने वाला हेलमेट तैयार; ट्रायल सफल रहा, 37 लाख रुपए कीमत के साथ जल्द ही मार्केट में उतारा जाएगा

अमेरिकी वैज्ञानिक का दावा:इंसान के दिमाग को पढ़ने वाला हेलमेट तैयार; ट्रायल सफल रहा, 37 लाख रुपए कीमत के साथ जल्द ही मार्केट में उतारा जाएगा

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अमेरिकी वैज्ञानिक ने ऐसा हेलमेट तैयार किया है तो इंसान का दिमाग पढ़ने में सक्षम है। हेलमेट तैयार करने वाले बायोहैकर ब्रायन जॉनसन का कहना है, इंसान के दिमाग में क्या चल रहा है, उसकी तस्वीर दिखाने में यह हेलमेट असरदार है। उम्मीद है 2030 तक ऐसे सेंसर वाले हेलमेट बनाए जा सकेंगे जो स्मार्टफोन से ज्यादा महंगे नहीं होंगे। फिलहाल वर्तमान में तैयार एक हेलमेट की कीमत 37 लाख रुपए है। मेंटल डिसऑर्डर के मरीजों को मिलेगी मददब्रायन का कहना है, इस हेलमेट को जल्द ही मार्केट में उतारा जाएगा। इसका इस्तेमाल उन लोगों के लिए वरदान साबित होगा जो मानसिक रोगी हैं या स्ट्रोक के मरीज हैं। यह मस्तिष्क के न्यूरॉन्स की एनालिसिस करता है और दिमाग की हर गतिविधि को अनगिनत समय तक पढ़ सकता है। इंसानी दिमाग को AI से जोड़ने का लक्ष्य थाकैलिफोर्निया के स्टार्टअप कर्नल के फाउंडर ब्रायन जॉनसन का कहना है, हम लम्बे समय से ऐसे...
चीनी वैज्ञानिकों का चौंकाने वाला प्रयोग:नर चूहों ने दिया बच्चों को जन्म, 21 दिनों में इनमें चूहों के बच्चे विकसित हुए; सभी बच्चे स्वस्थ रहे

चीनी वैज्ञानिकों का चौंकाने वाला प्रयोग:नर चूहों ने दिया बच्चों को जन्म, 21 दिनों में इनमें चूहों के बच्चे विकसित हुए; सभी बच्चे स्वस्थ रहे

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चीन में नर चूहों ने बच्चों को जन्म दिया है। यह प्रयोग शंघाई की नेवल मेडिकल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने किया है। वैज्ञानिकों ने इसे रैट मॉडल नाम दिया है। हालांकि, चीनी वैज्ञानिकों के इस प्रयोग की आलोचना भी की जा रही है। नर चूहों ने ऐसे बच्चे पैदा किएचीनी वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च को चार भाग में पूरा किया है। वैज्ञानिकों ने सबसे पहले नर और मादा चूहे को अगल-बगल रखकर स्किन में टांका लगाकर जोड़ा। फिर मादा चूहों की बच्चेदानी को बाहर निकाला। इसे नर चूहों के शरीर में ट्रांसप्लांट किया। फिर नर चूहों को प्रेग्नेंट किया गया और सिजेरियन की मदद से डिलीवरी कराई गई। 21 दिनों में विकसित हुआ भ्रूणवैज्ञानिकों का कहना है, चूहों को प्रेग्नेंट करने के बाद अगले 21.5 दिनों तक इनमें भ्रूण विकसित हुए। समय पूरा होने पर इनकी सर्जरी की। रिसर्च में सामने आया कि जन्मे सभी नर बच्चे अगले तीन महीने तक जिंदा रह सक...